वाल्मीकि जयंती की हार्दिक शुभकामनाये वाल्मीकि जयंती एक वार्षिक भारतीय उत्सव है जिसे विशेष रूप से वाल्मीकि धार्मिक सभा के द्वारा मनाया जाता है महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत का ज्ञानी कहा जाता है. वाल्मीकि के जन्म को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं हैं. लेकिन कहा जाता है उनका जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. संस्कृत के विद्वान महर्षि वाल्मीकि की खास पहचान महाकाव्य रामायण की रचना से है. रामायण को पहला महाकाव्य माना जाता है. कहा जाता है कि वाल्मीकि जी पहले एक डाकू थे. जो नारद जी के ज्ञान के बाद वे महर्षि बन गए. महर्षि बनने के बाद वाल्मीकि जी ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की. जो पूरे विश्व में विख्यात है.
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महर्षि वाल्मीकि का जीवन
हम आपको बता दे की वाल्मीकि महर्षि बनने से पहले ये रत्नाकर नाम से जाने जाते थे.जो अपने परिवार का पेट भरने के लिए दूसरो से लूटपाट किया करते है, एक बार इनकी भेट नारद जी से हुई जिन्हे वाल्मीकि जी ने लूटने की कोशिश की थी.इसी समय नारद जी ने वाल्मीकि से पुछा की आप ये काम क्यों करते है. तो वाल्मीकि जी ने सीधा जबाब दे दिया की मै ये काम अपने परिवार बालो के पालन-पोषण के लिए करता हूँ. इस बात को सुनते नारद जी ने वाल्मीकि से पुछा की क्या आपका परिवार आपके इस पाप का भागीदार बनेगा।
इतना सुनते ही वाल्मीकि ने नारद जी को एक पेड़ से बांध दिया। और वाल्मीकि जी उस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर पहुँच गए पर उन्हें सुनकर बहुत निराश हुए जब उनके परिवार वालो में कोई भी इस पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं था. इतना सुनते ही रत्नाकर वापस नारद जी के पास पहुंचे और उनके चरणों में गिर गए. तव नारद मुनि ने रत्नाकर सेकहा की भगवान् राम का जप करे. लेकिन खास बात ये है कि वो वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे. तब नारद जी ने उन्हें एक उपाय बताया कि वो मरा-मरा जपें.
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नारद जी के कहने पर महर्षि वाल्मिकी मरा… मरा.. मरा.. मरा.. मरा.. मरा..मरा…मरा..मरा..मरा..मरा. राम.राम.र.राम.राम. रटते रटते महर्षि वाल्मीकि बन गए जो आज भी विख्यात है.
वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा
महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। तपस्या समाप्त होने जब ये दीमक की बांबी जिसे ‘वाल्मीकि’ भी कहते हैं, तोड़कर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे.
महर्षि वाल्मीकि महाकाव्य रामायण की रचना
महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना बिठूर में स्थापित महर्षि वाल्मीकि आश्रम में की थी.जो की हिन्दुओ के लिए इस पवित्र आश्रम का बहुत महत्वा रखता है.संत वाल्मीकि इसी आश्रम में रहते थे.जब राम ने सीता को त्याग दिया था तब सीता भी इसी आश्रम में रहने लगी और उन्होंने इसी आश्रम में अपने दोनों पुत्र लव-कुश को जन्म दिया।
महर्षि वाल्मीकि जी श्लोक की रचना
महर्षि वाल्मीकि जी एक बार नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे उसी समय वाल्मीकि जी ने देखा की एक सारस पक्षी का जोड़ा प्रेमलाप में मग्न था. उसी समय एक शिकारी ने उन पक्षी सारस के ऊपर बाण चला दिया जिस वजह से दोनों की मृत्यु हो गयी इसी दृश्य को देखकर महर्षि वाल्मीकि के मुख से एक श्लोक निकल पड़ा
माँ निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।
महर्षि वाल्मीकि जयंती पर उत्साह
देश भर में वाल्मीकि जयंती धूम -धाम से मनाई जाती है जगह-जगह जुलूस और झांकिया निकली जाती है,इस दिन लोगो में जवर्दस्त उत्साह देखने को मिलता है. इस दिन भक्तगण झांकियो में नाचते गाते आगे बढ़ते है.
हमारी तरफ से आप सभी लोगो को वाल्मीकि जयंती की हार्दिक शुभकानाए मै आशा करता हूँ की आपको वाल्मीकि जयंती कब और क्यों मनाई जाती के बारे में उचित जानकारी मिल गयी होगी